थुंगन समिति
1988 में, संसद की सलाहकार समिति ने राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे की जांच करने के उद्देश्य से एक उप-समिति का गठन किया जिसकी अध्यक्षता पी. के. थुंगन ने की। इस समिति ने पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए:
संवैधानिक मान्यता: पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्राप्त होनी चाहिए।
त्रि-स्तरीय पंचायती राज: गांव, प्रखंड और जिला स्तरों पर त्रि-स्तरीय पंचायती राज संस्थाएं होनी चाहिए।
जिला परिषद की धुरी: जिला परिषद को पंचायती राज व्यवस्था की धुरी होनी चाहिए और उसे जिले के विकास और योजना के लिए कार्यकारी अभियांत्रिक के रूप में कार्य करना चाहिए।
निश्चित कार्यकाल: पंचायती राज संस्थाओं का पांच वर्ष का निश्चित कार्यकाल होना चाहिए।
सुपर सत्र की अवधि: एक संस्था के सुपर सत्र की अधिकतम अवधि छह माह होनी चाहिए।
योजना मंत्री की समन्वय समिति: राज्य स्तर पर योजना मंत्री की अध्यक्षता में एक योजना निर्माण और समन्वय समिति होनी चाहिए।
संविधान में समाहित करने के लिए सूची: पंचायती राज पर केंद्रित विषयों की एक विस्तृत सूची तैयार की जानी चाहिए और उसे संविधान में शामिल किया जाना चाहिए।
आरक्षण: पंचायती राज के तीन स्तरों पर जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण होना चाहिए, और महिलाओं के लिए भी आरक्षण होना चाहिए।
राज्य वित्त आयोग: हर राज्य में एक राज्य वित्त आयोग का गठन होना चाहिए, जो पंचायती राज संस्थाओं को वित्त के वितरण के पात्रता-बिंदु तथा विधियों को निर्धारित करेगा।
जिला परिषद का मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी: जिला परिषद का मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी जिले का कलेक्टर होना चाहिए।
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