जी. वी. के. राव समिति
1985 में, ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की समीक्षा के लिए योजना आयोग ने जी. वी. के. राव की अध्यक्षता में एक समिति की गठन की। इस समिति के उद्देश्य थे कि मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्थाओं को ग्रामीण विकास प्रोजेक्ट्स की समीक्षा करने के लिए आवश्यक सुझाव देना। समिति की रिपोर्ट ने यह खुलासा किया कि विकास प्रक्रिया दफ्तरशाही युक्त होने के कारण पंचायत राज से अलग हो गई है और इसका परिणामस्वरूप पंचायती राज संस्थाएं कमजोर हो गई हैं। इसे 'बिना जड़ की घास' कहा गया। इस समस्या के समाधान के लिए समिति ने कई सुझाव दिए:
जिला स्तरीय निकाय: जिला परिषद को लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण में महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए। समिति ने यह सुझाव दिया कि "नियोजन और विकास की उचित इकाई जिला है और जिला परिषद को विकास कार्यक्रमों के प्रबंधन के लिए मुख्य निकाय के रूप में बनाया जाना चाहिए।"
पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका: जिला और स्थानीय स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं को विकास कार्यों के नियोजन, क्रियान्वयन और निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका देनी चाहिए।
जिला नियोजन का सुधार: प्रभावी जिला नियोजन के लिए राज्य स्तर के कुछ नियोजन कार्यों को जिला स्तर पर हस्तांतरित किया जाना चाहिए।
जिला विकास आयुक्त: एक जिला विकास आयुक्त की भूमिका तैयार की जानी चाहिए, जो जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य करें और विकास विभागों का प्रभारी हों।
नियमित निर्वाचन: पंचायती राज संस्थाओं में नियमित निर्वाचन कराया जाना चाहिए।
इस प्रकार, समिति ने पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत और पुनर्जीवित करने के लिए विभिन्न सुझाव दिए जो उनकी बेहतर नियोजन और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका बना सकते थे।
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